हम सबके लिए ज़िन्दगी का सबसे खुबसूरत सपना होती है “शादी”…. पूरा परिवार जाने कितने जतन करता है इस सपने को पूरा करने के लिए और अनगिनत स्वाभाविक समझोते होते है इस एक रिश्ते को बेहतरीन बनाने के लिए| इतना सब करने के बाद भी यह एक कड़वा अनुभव बन कर क्यों रह जाता है!!! जिसे हमने सब कुछ छोड़ कर अपनाया है और अपना सर्वश्व न्योछावर कर दिया आज उसके साथ एक पल भी गुजारना मुमकिन नज़र नही आता है!!!! ऐसा नहीं है की हर शादी का हश्र ऐसा ही हो लेकिन अगर रिसर्च रिपोर्ट को देखा जाये तो 85% शादियाँ कुछ ऐसे ही अनुभवों से गुज़र रही हैं।
कहते हैं कि शादी-विवाह संस्कार से होते हैं। संस्कार अर्थात् ऋणानुबंधन अथवा पिछले जन्म के लेन-देन और संबंधों का बंधन। यही वो चीज है जो तय करती है कि इस जन्म में हमें किससे मिलना है, किसे क्या देना है, और कौन हमें क्या देगा।
यूं तो संस्कार शब्द ही अपने आप में जटिल हैं और हमारे जीवन के हर संबंध से जुड़ा हुआ है। लेकिन जब बात विवाह की आती है तो संस्कार और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसा इसलिए कि भारत में विवाह न केवल दो शरीरों का वरन दो आत्माओं और दो परिवारों का मिलन माना जाता है।
ऐसे में यदि पिछले जन्म के संस्कार अच्छे हैं तो इस जन्म में भी हमें अच्छा जीवनसाथी ही मिलेगा लेकिन यदि संस्कार ही खराब है तो जीवनसाथी भी खराब ही मिलेगा या फिर जीवनसाथी अच्छा होगा तो भी किसी न किसी कारण से आपकी उसके साथ नहीं बनेगी। शायद इसीलिए विवाह संबंधों को “उधारी का सौदा” कहते हैं।
बहुत बार हमने देखा है कि पति-पत्नी दोनों में से कोई एक खराब होता है और दूसरा इस संबंध को न चाहते हुए भी जीवन भर झेलता है, चलाता है, कई बार तो मृत्यु ही उसकी मुक्ति का साधन बनती है। इसी तरह कई बार पति-पत्नी दोनों ही अच्छे होते हैं लेकिन आपसी समझ नहीं बन पाती या फिर आपसी सामंजस्य के अभाव के चलते अलग हो जाते हैं। और कई बार दो बिल्कुल अलग-अलग दिशाओं में चलने वाले लोग भी अच्छे जीवनसाथी साबित होते हैं और जीवन में कई उतार-चढ़ावों के बाद भी अच्छे संबंधों की मिसाल बने रहते हैं।
इस संस्कार को जानने के लिए ही हम कुंडली देखते हैं। ज्योतिष के आधार पर यह बड़ी आसानी से मालूम किया जा सकता है कि पति-पत्नी के आपसी संस्कार (पिछले जन्मों का लेन-देन या संबंध) कैसे हैं और इस जन्म में उनका संबंध अच्छा या बुरा कैसा रहेगा। इसी को जानने के लिए कुंडली की सहायता ली जाती है। इसके लिए ही दोनों की कुंडली मिलाई जाती हैं, जब दोनों की कुंडली एकदम मैच हो जाती हैं तभी उनके सुखद दाम्पत्य जीवन की संभावना होती है।
ज्योतिष के अनुसार कुंडली के सातवें घर से जीवनसाथी का मालूम किया जाता है। यदि यहां बैठा ग्रह अनुकूल है तो आपको जीवनसाथी अच्छा मिलेगा लेकिन इसके साथ ही कई और बातें भी आपको देखनी होती हैं। जैसे आपकी कुंडली का बारहवां घर जीवनसाथी का छठा घर होता है, यानि कि आप उसकी बीमारी पर कितना खर्च करेंगे, आपको वैवाहिक सुख कैसा मिलेगा। यह बताता है।
जीवनसाथी की कुंडली का नवां घर आपकी कुंडली का तीसरा घर है जो आप दोनों के धर्म-कर्म की रूचि के साथ-साथ आपके दाम्पत्य जीवन के सुख-दुख को भी बताता है। यही वो चीज है जिसके चलते कई ज्योतिषी पति-पत्नी में से किसी भी एक की कुंडली होने पर भी दोनों का भाग्य बिल्कुल सही बता देते हैं।
कुंडली के इन्हीं भावों को देखने के बाद बताया जा सकता है कि किसी व्यक्ति के भाग्य में गृहस्थ सुख कैसा है और उसे कैसा जीवन साथी मिलेगा।
ज्योतिष के इस दृष्टिकोण के अलावा अगर डॉ ब्रायन एल विस की थ्योरी पर गौर करे तो वो पूर्व जनम के हिसाब किताब की बात करते है| जब कोई व्यक्ति हमें बेहद मानसिक तनाव या दुःख देता है तो स्वाभाविक रूप से हम उस व्यक्ति से और उसके द्वारा दी जा रही पीडाओ व् यातनाओ से अंतर्मन की गहराई से जुड़ जाते है, मृत्यूपरांत नए जन्म में जब उसी व्यक्ति से हमारी पुनः मुलाकात होती है तो हम क्योंकि उसके द्वारा दी गई पीड़ा को भूल तो चुके होते है लेकिन वो जुडाव जो अंतर्मन का है वो फिर से जाग्रत हो जाता है| हमें यह लगता है की हम सोल मेट है जबकि हालात एक दम अलग होते है और इस गलती का अनुभव हमें अक्सर देर से होता है ………… डॉ ब्रायन एल विस की थ्योरी की माने तो किसी भी व्यक्ति से गहराई से की गई नफ़रत या क्रोध या हिंसा हमें कालांतर में समक्ष ले आती है… और हम इसे प्रेम समझने की तात्कालिक गलती कर बैठते है|
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हमारी आत्मा एक सफर पर निकली है और यह सफर पुरानी भूलों को सुधारने और नए अनुभवों के लिए है| जो हो गया उसे पीछे छोड़ दे.. कोशिश यह ना करे की कोई और आपके लिए बदल जायेगा …. स्वयं में अगर परिवर्तन कर सके तो बेहतर अन्यथा कोई अपेक्षा न रखे … स्वयं को भी उतना ही बदले जितना आत्मा को कष्ट ना हो अन्यथा जीवित रहते हुए आत्महत्या होगी यह…