इस बार नवरात्रि के चौथे दिन 13 अक्टूबर मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा होगी. स्कंदमाता को वात्सल्य की मूर्ति भी कहा जाता है. संतान प्राप्ति के लिए मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. इनकी साधना से जातक को अलौकिक तेज प्राप्त होता है. मां अपने भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार भी खोलती हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, जिन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है. स्कंद कार्तिकेय को कहा जाता है. इसलिए कार्तिकेय की माता को स्कंदमाता के नाम से जाना गया.
स्कंदमाता को सृष्टि की पहली प्रसूता स्त्री माना जाता है. स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. इसलिए मां स्कंदमाता के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. पूजा में कुमकुम, अक्षत से पूजा करें. चंदन लगाएं. तुलसी माता के सामने दीपक जलाएं. स्कंदमाता की पूजा करने के लिए पीले रंग के वस्त्र पहनें.
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. माता दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं.
मां कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. मां का वाहन सिंह है. मां का यह स्वरूप सबसे कल्याणकारी होता है. जिन लोगों को संतान सुख नहीं मिला है, उन्हें स्कंदमाता की पूजा जरूर करनी चाहिए. स्कंदमाता के आर्शीवाद से संतान सुख प्राप्त होता है.
यदि आप मां स्कंदमाता की पूजा करने जा रहे हैं तो इस मंत्र का जाप बेहद शुभकारी होगा.
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
या
सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी।
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी।।