बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है।
यदि पंचमी तिथि दिन के मध्य के बाद शुरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में वसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाएगी। हालाँकि यह पूजा अगले दिन उसी स्थिति में होगी जब तिथि का प्रारंभ पहले दिन के मध्य से पहले नहीं हो रहा हो; यानि कि पंचमी तिथि पूर्वाह्नव्यापिनी न हो। बाक़ी सभी परिस्थितियों में पूजा पहले दिन ही होगी। इसी वजह से कभी-कभी पंचांग के अनुसार बसन्त पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है।
माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष ये पर्व 1 फरवरी को मनाया जाएगा, इस दिन को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन मां सरस्वती के मंत्रों का जाप करने से ज्ञान, विद्या, बल, बुद्धि और तेज की प्राप्ति होती है।
‘ऎं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां। सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।
एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : *ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।
‘वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ॥’
‘सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।’
आज के दिन ऊपर दिए गए मुहूर्त के अनुसार साहित्य, शिक्षा, कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के साथ यदि सरस्वती स्त्रोत भी पढ़ा जाए तो अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं और देवी प्रसन्न होती हैं।
आज के दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें “श्री” भी कहा गया है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः क़ारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।
ऊपर दी गईं सभी पूजाएँ पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से करनी चाहिए।
एक बात जो आपको हमेशा याद रखनी है वह यह कि पंचमी तिथि उसी दिन मानी जाएगी जब वह पूर्वाह्नव्यापिनी होगी; यानि कि सूर्योदय और दिन के मध्य भाग के बीच में प्रारंभ होगी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन *देवी रति और भगवान कामदेव* की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है।
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे,
अमुकनामसंवत्सरे माघशुक्लपञ्चम्याम् अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाहं सकलपाप – क्षयपूर्वक – श्रुति –
स्मृत्युक्ताखिल – पुण्यफलोपलब्धये सौभाग्य – सुस्वास्थ्यलाभाय अविहित – काम – रति – प्रवृत्तिरोधाय मम
पत्यौ/पत्न्यां आजीवन – नवनवानुरागाय रति – कामदम्पती षोडशोपचारैः पूजयिष्ये।
यदि बसन्त पंचमी के दिन पति-पत्नी भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा षोडशोपचार करते हैं तो उनकी वैवाहिक जीवन में अपार ख़ुशियाँ आती हैं और रिश्ते मज़बूत होते हैं।
ॐ वारणे मदनं बाण – पाशांकुशशरासनान्।
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त – विभूषणम्।।
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल – धारिणीम्।
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।