वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण माना गया है। जल तत्त्व से सम्बंध रखने वाली इस दिशा के स्वामी रूद्र हैं। इस दिशा को भी सदैव पवित्र रखना चाहिए।
दक्षिण-पूर्व दिशा को वास्तु शास्त्र में आग्नेय कोण माना गया है। अग्नि तत्त्व से सम्बंधित इस दिशा के स्वामी अग्नि देवता हैं। इस दिशा में बिजली के मीटर, विद्युत उपकरण और गैस चूल्हा आदि रखना चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा को वास्तु शास्त्र में नैऋत्य कोण कहा जाता है। इस दिशा का सम्बंध पृथ्वी तत्त्व से है और इस दिशा के स्वामी नैरूत हैं। इस दिशा के दूषित होने से चरित्र हनन, शत्रु भय, दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण का नाम दिया गया है। वायु तत्त्व वाली इस दिशा के स्वामी भी वरुण देवता हैं। इस दिशा के पवित्र रहने से घर में रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी आयु भी अच्छी रहती है।
वास्तु शास्त्र में भवन का मध्य भाग सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह भाग ब्रह्मा का होने से इसे हमेशा खुला रखने की सलाह दी जाती है। आकाश तत्त्व वाले इस स्थान के स्वामी सृष्टि के रचियता ब्रह्मा हैं।