कई बार जब हम पर या हमारे किसी आत्मीय परिजन पर कोई बड़ा खतरा आने वाला होता है तो हमें किसी न किसी तरह से उसका अहसास हो जाता है। खतरे के इसी पूर्वाभास को सिक्स्थ सेंस (छठी इंद्रिय) कहा जाता है। कुछ लोगों में यह सिद्धि अथवा शक्ति जन्मजात होती है तो कुछ में ईश्वरीय कृपा और साधु-संतों के आशीर्वाद से आ जाती है।
इसके अलावा भी कुछ लोग न केवल खतरों को भांप लेते हैं वरन उन्हें किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके भूत, वर्तमान और भविष्य का पता भी चल जाता है। वो जब भी चाहे किसी के भी मन की बात पढ़ सकते हैं। जब किसी व्यक्ति में इतनी क्षमता आ जाए तो उसे सिक्स्थ सेंस न कहकर दिव्य सिद्धी कहा जाता है। भारतीय योग तथा आध्यात्म शास्त्र में भी इस शक्ति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक योग्यता निर्धारित की गई है और कुछ ऐसी साधनाएं बताई गई हैं जिन्हें करके कोई भी अपने अंदर सिक्स्थ सेंस की शक्ति प्राप्त कर सकता है।
(1) इससे हम किसी के भी मन की बात जान सकते हैं और उसका लाभ उठा सकते हैं।
(2) इस शक्ति के प्राप्त होने के बाद भविष्य में होने वाली घटनाओं का आसानी से पता लग जाता है।
(3) व्यक्ति को कई अन्य दिव्य शक्तियां भी मिल जाती हैं जो उसके जीवन को बदल देती है।
किसी भी सूक्ष्म बिंदु पर अपने ध्यान को एकाग्र करना ही त्राटक कहलाता है। इसके सतत अभ्यास से व्यक्ति में सिक्स्थे सेंस की पॉवर डवलप हो जाती है।
योग शास्त्र में बताए गए कुछ खास प्राणायामों को करने से भी व्यक्ति को सिक्स्थ सेंस की सिद्धि प्राप्त होती है। लेकिन इन अभ्यासों को बहुत ही सावधानी के साथ करना चाहिए, अन्यथा नुकसान भी हो सकते हैं।