मुंबई से लगभग 50 किमी की दूरी पर बृजेश्वरी क्षेत्र के मेढ गाँव में स्थित है परशुराम तपोवन आश्रम। प्राचीन काल में यह स्थान ऋषि मेधातिथि की तपोभूमि रही है। यह क्षेत्र अग्नि क्षेत्र कहा जाता है। भगवान कृष्ण के गुरु सांदीपनि जी ने भी इसी क्षेत्र में प्राण त्याग थे। बृजेश्वरी देवी को भगवान परशुराम की बहिन माना जाता है कहते हैं भगवान परशुराम उनसे मिलने प्रतिदिन आते हैं।
इस तपोवन की विशेषता अद्भुत है इस आश्रम के संस्थापक हैं श्री दादा सचिनवाला। आप आर्किटेक्ट हैं जन्म से पारसी ।आप अपने आप को अग्नि पूजक होने के कारण वेदों का रक्षक मानते हैं। सम्पूर्ण परिसर निसर्ग का मंदिर है। दादा ने क्षेत्र को इस प्रकार से विकसित किया है जिससे वहाँ की प्रकृति को नुकसान न पहुँचे । वहाँ अलग अलग स्थानों पर सात यज्ञ कुण्ड (अग्यारी)का निर्माण किया है। यह कुण्ड सात प्रकार की अग्नि लोक का प्रतिनिधित्व करते है, ये हैं भू, भुवः, स्वः,महः,जनः, तपः, सत्यलोक। यहाँ किसी भी प्रकार की विद्युत का उपयोग नहीं किया गया है। यज्ञ करते समय यहाँ न धुंआ महसूस होता न गरमी। पूर्ण परिसर ऊर्जा से भरपूर, ध्यान के लिए कहीं भी बैठे ध्यान तुरंत लग जाता है।
दादा की 50 वर्षो की तपस्या का सुफल है यह तपोवन। सप्त अग्नि को प्रज्ज्वलित करने वाली माँ गायत्री की सिद्ध तपोभूमि को एक आर्य साधक जो जन्म से पारसी होते हुए भी सनातन संस्कृति को पोषित कर रहे हैं।शत् शत् नमन।